✴शहीद को माँ का खत✴

✴शहीद को माँ का खत✴
संग्राम में खेल ले खून की होली,हाथों में बाँधी जीत की रोली।
आरती करते हुए तिलक कर बोली ,मार के आना दुश्मनो को गोली।
कंधे पे लादी बारूद की झोली, दुष्टो की फाड़ आना कलेजे की खोली।
शत्रु को पैरों की चटाना माटी, नही चाटे तो देना जोर से लाठी।
गर्दन और पैर पकड़ तोड़ना नली, अंगारों पे सेक देना राख काली।
फेकें तुझपे दौड़कर फंदे, आँखे निकल करना सबको अंधे।
अपशब्द की भोके खाँसी, पुरेको लटका देना एक साथ फाँसी।
सिर में मुक़ा मारकर फोड़ना गोले, जब तक वंदे मातरम ना बोले।
तू जीता इसका ये उपदेश ,सदा तू आजाद रहे ये संदेश।

Livepustak.blogspot.com


आप ऐसी ही कविताएँ पसंद करते हो , तो Google पे
Livepustak.blogspot.com  लिखकर search
कीजिये ।


Livepustak सिर्फ कविताएँ लिखकर आपका मनोरंजन ही
नही करती हैं , देश की समस्याओ की और इशारा करती हैं ।


अगर आपको लगता हैं , कि इस समस्या पे Livepustak ने कविता नही लिखी हैं ।
तो आपका topic हमें comment में भेजिए ।


मैं मानता हूँ ,कि आप राष्ट्र से बहुत प्रेम करते हों । फिर भी आपकी कोई बात नहों सुनता हैं ।

"आप गलत नही , सिर्फ अकेले हो "

तो आपके जैसे बहुत लोग livepustak से जुड़े हैं , आप भी जुड़िये ।
और आपके आसपास की समस्या हमें भेजिए ।

हम आपकी बात प्रत्येक व्यक्ति तक पहुँचने में मदद करेंगे ।
आपने livepustak को इतना प्यार दिया, कि आज बहुत कम समय में 1000  क्लीक हो गये ।
     
                              " धन्यवाद "
                   livepustak.blogspot.com


टिप्पणियाँ