✴शहीद को माँ का खत✴
✴शहीद को माँ का खत✴
संग्राम में खेल ले खून की होली,हाथों में बाँधी जीत की रोली।
आरती करते हुए तिलक कर बोली ,मार के आना दुश्मनो को गोली।
कंधे पे लादी बारूद की झोली, दुष्टो की फाड़ आना कलेजे की खोली।
शत्रु को पैरों की चटाना माटी, नही चाटे तो देना जोर से लाठी।
गर्दन और पैर पकड़ तोड़ना नली, अंगारों पे सेक देना राख काली।
फेकें तुझपे दौड़कर फंदे, आँखे निकल करना सबको अंधे।
अपशब्द की भोके खाँसी, पुरेको लटका देना एक साथ फाँसी।
सिर में मुक़ा मारकर फोड़ना गोले, जब तक वंदे मातरम ना बोले।
तू जीता इसका ये उपदेश ,सदा तू आजाद रहे ये संदेश।
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