✍नाँव बोल रही हैं , नाविक को✍
✍नाँव बोल रही हैं , नाविक को✍
मुझे नदी दे रही हैं ,जोर-जोर से खटके ।
तू भी मेरी पीठ पे , जल्दी-जल्दी दे फटके ।
मेरी कमर में झाग , दोनों हाथ से लटके ।
हवा एक करवट , दे रही नींद के झटके ।
लहरे मुँह में दे रही , पानी के दो-दो मटके ।
बारिश भी उगल रही , भर-भर के घटके ।
पेड़ भी पत्ती उड़ाकर , मेरे सिर पे पटके ।
मछली ना मरे , तो बार-बार निकलू हटके ।
सूरज दे रहा हैं , कंधो पे गर्म-गर्म चटके ।
हँस मेरी चोटी पे , शिप-मोती लेने टीटके ।
पत्थर कमर मटका ,दे रहे पानी के छिटके ।
बालू ढ़ेर के मचको में , मेरे पुर्जे-पुर्जे कटके ।
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