✴गिरगिट के रंग✴
✴गिरगिट के रंग✴
प्यार का नकाब पहन ,
लोग इज़्ज़त लूट रहे ।
धर्म के पीछे छुपकर ,
दुनिया से पैसे लूट रहे ।
जितना सच बोलना था ,
उतना झूठ बोल रहे ।
चंद धन के लालच में ,
मूर्ख! देश को बेच रहे ।
माँ-बाप को छोड़कर ,
पहाडो को पूज रहे ।
सुख ढूंढने के चक्कर में ,
पूरी दुनिया में भटक रहे ।
धर्मयुद्ध शास्त्र से होता हैं ,
धर्मयुद्ध भी सस्त्र से लड़ रहे ।
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