✍जा फसा मरुस्थल में✍

✍जा फसा मरुस्थल में✍

मरुस्थल की बालू में,नीर टटोल रहा ।।                    
 मानव तरसा-तरसा ,भटक रहा ।
लाल होंठो को , नीर सूखा रहा ।
तभी से मैन , नीर को परखा ।
गला अंदर ही अंदर, घुट रहा ।
कब आएगी , बरसात की बूंदे ।
मुँह की रौनक , मिटा रहा ।
लाल तरबूज़  में , मारे हो टाके ।
जंगल की ठोकरे , खा रहा ।
लगता आ रहा हो, छोटा सा बच्चा ।
रक्त को मुँह  में , चाट  रहा ।
जैसे आम चूस रहा हो  , कच्चा ।
जगह-जगह पड़कर ,  कह रहा ।
आस-पास कही नही हैं, नीर का अड्डे ।
बड़े-बड़े नाखून से , खोद रहा ।
कई हाथ के लंबे , गड्डे ।
पानी की मोठ , ले जा रहा ।
नीर पीकर ली , उसके पैरों की धूल ।
नीर की कीमत , कर रहा ।
अब मरुस्थल नही , आऊँगा भूल ।
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