।। जा रहा हूँ , मैं ।।

।। जा रहा हूँ , मैं ।।
मैं कभी रोता हुआ , 
तो कभी हस्ता हुआ......
गम के ढेर के नीचे दब हूँ ,
फिर भी मुस्कुराता हुआ....
मेरे साथ कोई नही हैं ,
अकेले ही बाते करता .....
पैरो की आहट की ताल पे ,
गुनगुनाता हुआ कदम चलते...
थका हुआ भी जीतने के लिए ,
बिना रुका ही दौड़ता हुआ.....
मुझे जीतने का शौक नही ,
धावक को राह मील इसलिए....
रास्ता नया देख बच्चे डरे नही,
इसलिये पैरो के निशान बनाता....
बचपन खेल-खेल में बिता था ,
जवानी की जंग से गुजरता.....
दुनिया भी देखी अपने भी देखे ,
जिंदगी के दंगल में दाव लगता....
कुछ दिन तो गुजर ही गये हैं ,
कुछ दिन और गुजारते ही ......
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