✴मन का खत✴

          ✴मन का खत✴
पैदल चल रहा था , मैं भविष्य की रहो में ।
पैरो की आहट से , मैं अचानक भ्रमित हो गया ।
मुझे सच दिख दो , कि मैं कौन हूँ ।
फिर सोचने लगा ,  मैं कह से आया ।
इतनी तेज गति से , कहा जा रहा हूँ ।
मुझे कुछ पता नही ,मैं फिर से चलने लगा ।
दो-चार कदम चला , मैं और ज्यादा भ्रमित हो गया ।
वापस चलने में , मैं सब कुछ भुल गया ।
और फिर चलने लगा , मैं पता नही क्यो ।
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