✴इंसानियत भूलता जा रहा हूँ , मैं✴

✴इंसानियत भूलता जा रहा हूँ , मैं✴

अरे! लुटेरो मुझे ना रोको ,क्योकि देश लूटता जा रहा हूँ मैं ।

मुझे पता हैं, मेरा देश लूट रहा! फिर भी , लूटता जा रहा हूँ मैं।

नब्बे हजार बलिदान भूलकर , जश्न मानाता जा रहा हूँ मैं ।

माँ भारती की सेवा के नाम पे , पैसा लुटता जा रहा हूँ मैं ।

मेरी संस्कृति भूलकर इंसानियत भी , भूलता जा रहा हूँ मैं ।

मेरे रास्ते के काटे उठाकर दुसरो पे, फेंकता जा रहा हूँ मैं ।

मेरे पेट के लिए निर्दोष के गले को , रेतता जा रहा हूँ मैं ।

अपनो के शौक पूरे करने के लिए  खून , करता जा रहा हूँ मैं ।

कल भी लुटा था ,आज लुटा था , और भी लूटता जा रहा हूँ मैं ।
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